दिमाग़ पर कैसे छा जाता है लाल रंग

लाल शायद सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाला रंग है. ये दफ़्तर में आपके काम से लेकर निजी संबंधों तक को प्रभावित करता है. लेकिन कैसे, पड़ताल कर रहे हैं डेविड रॉबसन.

दिमाग़ पर कैसे छा जाता है लाल रंग

महारानी के ताज के लांल रंग से लेकर एम्सटर्डम के रेड लाइट एरिया तक आज सुर्ख़ रंग के शेड्स को सत्ता, आक्रमण और सेक्स से जोड़कर देखा जाता है.

'रंगों के मनोविज्ञान' से पता चला है कि लाल रंग का हमारे मूड, विचारों और काम पर गहरा असर होता है.

इससे आपकी फिजियोलॉजी और हार्मोन संतुलन पर और खेल के मैदान में प्रदर्शन भी प्रभावित हो सकता है.

आक्रामकता
बहुत से स्तनधारी प्राणी कुत्तों की तरह लाल और हरे रंग में फ़र्क़ नहीं कर पाते.

जब हमारे पूर्वज जंगल के जीवन में ढल रहे थे तब उनकी आँखों के रेटिना में एक ख़ास सेल विकसित हो रहा था. ये पत्तों के बीच से लाल चमकीले फलों को चुनने में मदद करता था.

धीरे-धीरे ग़ुस्से में नाक लाल होना ताक़त की निशानी बन गया. मेंड्रिल बंदर इसका अच्छा उदाहरण हैं. जितना सेहतमंद बंदर, उतना गाढ़ा उसकी नाक का लाल रंग.

2004 में यूनविर्सिटी ऑफ़ डरहम के मनोवैज्ञानिकों रसेल हिल और रोबर्ट बार्टन ने शोध शुरू किया कि क्या मनुष्यों में ऐसा होता है.

मनुष्य भी 'ग़ुस्से में लाल' हो जाते हैं.

खेल में

हिल और बार्टन ने 2004 के ओलिंपिक खिलाड़ियों के पहनावों पर शोध किया.

मुक्केबाज़ी और ताईक्वांडो में हुए इस शोध में पाया गया कि लाल रंग की पोशाक पहनने वाले ख़िलाड़ियों के जीतने की संभावना पांच प्रतिशत अधिक थी.

हिल कहते हैं, "लाल रंग की पोशाक आपको ज़बरदस्त खिलाड़ी नहीं बना देती है लेकिन जब आपका मुक़ाबला बराबरी के प्रतिद्वंदी से हो तो यह जीत और हार के संतुलन को ज़रूर प्रभावित करती है."

फ़ुटबॉल के मैदान पर शोध से पता चला कि यदि गोलकीपर ने लाल रंग पहना हो तो पेनॉल्टी शूटआउट में गोल की संभावना कम हो जाती है.

सेक्स पर असर
यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोचेस्टर के एंड्रयू एलियट कहते हैं कि लाल रंग पहनने वाले अपने आपको ज़्यादा प्रभावी समझते हैं जिससे दिल की धड़कन और टेस्टोस्टोरोन की मात्रा बढ़ जाती है.

कुछ फ़ैशन विशेषज्ञों के मुताबिक़ लाल टाई पहनने से दफ़्तर में अपने प्रभाव और अधिकार का अहसास होता है.

लाल रंग की पोशाक वाली महिला वेटरों को अधिक टिप मिलती है.

नकारात्मकता
मगर लाल रंग की वजह से होने वाली आक्रामकता के नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं.

प्रोफ़ेसर एलियट कहते हैं "लाल पके हुए फल का रंग है, ग़ुस्साए चेहरे का रंग है, सेक्स उत्तेजना का रंग है. इसलिए इसे हमेशा हमारे अस्तित्व से जोड़कर देखा जाता रहेगा. हम बस इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि जब हमारे पूर्वजों ने अपने बदन को रंगना शुरू किया था तो क्या सोचा होगा. यही कि लाल जैसा कोई रंग नहीं है."

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