जनवरी से अब तक बाजार में बदला क्या है?

राजीव रंजन झा : जनवरी के पहले हफ्ते में शुरू तेजी जब लोगों की नजर में चढ़ी तो सवाल उठे कि आखिर बाजार में बुनियादी रूप से ऐसा क्या बदल गया, जिसकी वजह से इतनी तेजी आयी?

इसका एक जवाब तो शायद यह है कि भारतीय बाजार बुनियादी रूप से इतना कमजोर भी नहीं हो गया था कि निफ्टी को करीब 4500 तक फिसलना पड़े। लेकिन बाजार बुनियादी बातों के साथ-साथ मनोविज्ञान पर भी चलता है। यही मनोविज्ञान तय करता है कि लोग बाजार में खरीदारी की ओर झुकेंगे या बिकवाली की ओर।
जब लोग बिकवाली की ओर ज्यादा झुक जाते हैं, तो बाजार बुनियादी तौर पर उचित मूल्यांकन से कहीं ज्यादा नीचे गिर जाता है। जब लोग खरीदारी के पीछे भागने लगते हैं तो बाजार उचित मूल्यांकन से कहीं ज्यादा, कभी-कभी काफी ज्यादा महँगा भी हो जाता है। बाजार एक ऐसा पेंडुलम है जो हमेशा उचित भाव की तलाश में रहता है, लेकिन उस उचित भाव पर शायद एक क्षण से ज्यादा टिक भी नहीं पाता। यह लगभग हर समय उचित भाव से दूर ही रहता है, कभी कम तो कभी ज्यादा।
खैर, फंड मैनेजरों का एक सर्वेक्षण बता रहा है कि बीते 3 महीनों में भारतीय बाजार के बारे में भविष्य का नजरिया काफी बदला है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की ओर से किये गये इस सर्वेक्षण के मुताबिक ज्यादा फंड मैनेजर 3 महीने पहले की तुलना में अब भारतीय शेयर बाजार में निवेश को लेकर ज्यादा भरोसा कर पा रहे हैं। सबसे अहम बात यह है कि अब ज्यादातर फंड मैनेजर बाजार में किसी बड़ी गिरावट की आशंका नहीं देख रहे हैं। मैंने हाल में कई बार लिखा कि बाजार में बड़ी संख्या में लोग केवल और गिरावट की आशंका के चलते खरीदारी से दूर हैं और जब भी उन्हें गिरावट पूरी होने और तलहटी बन जाने का भरोसा होगा, वे खरीदारी शुरू कर देंगे। बाजार में अभी वैसी ही स्थिति दिख रही है।
हाल तक विश्लेषक कंपनियों के नतीजों को लेकर चिंता में थे। कंपनियों की आय के अनुमान और उसकी वजह से सेंसेक्स-निफ्टी की ईपीएस के अनुमान घटाने का सिलसिला चल रहा था। लेकिन इस सर्वेक्षण के मुताबिक फंड मैनेजरों ने भविष्य की आय के अनुमान बढ़ाये हैं, खास कर 2012-13 के लिए। यह बाजार के लिए अच्छा संकेत है। हाल के तिमाही नतीजे भी इसी राय को पुख्ता करते हैं कि हालात जितने खराब नहीं थे, उससे कहीं ज्यादा घबराहट थी। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 17 फरवरी 2012)

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