क्रूरता की हद का मनोविज्ञान समझे

बिहार के गया के एक गांव में जमीन विवाद को लेकर एक ही परिवार की पांच नाबालिग लड़कियों की हत्या का मामला क्रूरता का उदाहरण है. हत्या के आरोपी पेशेवर अपराधी नहीं हैं, बल्कि उसी गांव के रहनेवाले हैं. वे एक-दूसरे को बरसों से जानते थे. जमीन विवाद को लेकर दो परिवारों की लड़ाई चल रही थी. फिर इस तरह की क्रूरता भरी हरकत? क्रूरता के इस मनोविज्ञान को हमें समझना होगा.

अपराध के इस मनोविज्ञान को समझे बिना, इस तरह की आपराधिक घटनाओं को नहीं रोका जा सकता है. घर में घुस कर पांच लड़कियों की एक साथ हत्या के मामले में जो बातें सामने आ रही है, उससे यह साफ है कि हत्यारों को कानून का कोई खौफ नहीं था. पुलिस की कार्रवाई बहुत ही ढीली रही थी. अपराध करनेवालों को अपराध की योजना बनाने और उसे लागू करने का पूरा अवसर मिला. अपराधियों ने आसानी से घर में सो रही पांच लड़कियों को निशाना बनाया. पुलिस और राज्य सरकार हत्या की इस तरह की घटनाओं की जिम्मेवारी से हर बार बचने की कोशिश करती हैं.

पुलिस कहती है कि हत्या की इस तरह की घटनाओं पर रोक नहीं लगायी जा सकती है. इस घटना में साफ तौर पर लगता है कि पुलिस अगर समय पर कार्रवाई करती, तो पांच मासूम जानें बच जातीं. हत्यारों ने एक दिन पहले ही पूरे परिवार के सफाये की धमकी दी थी. पुलिस के पास मामला भी पहुंचा था. पर, पुलिस ने पूरे प्रकरण को हल्के में लिया. अमूमन पुलिस इसी तरह से मामलों को हैंडल करती है. समाज के स्थापित मूल्य बदल रहे हैं. पहले क्रूर व पेशेवर अपराधी भी बच्चों पर रहम करते थे. अब ऐसा नहीं है. अब बदला लेने के लिए बच्चों को भी शिकार बनाया जा रहा है.

अब नि:शक्तों, बच्चों या औरतों की भी हत्या से अपराधियों को गुरेज नहीं है. पिछले दिनों झारखंड के लातेहार में अपने संबंधी का शव लेकर जा रही एक महिला सिपाही को लुटेरों ने लूटा और सामूहिक दुष्कर्म किया. इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि पुलिस का भय कम हुआ है. कानून के प्रति आस्था घट रही है. ऐसे में क्रूरता के साथ बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ती है. सही समय पर उचित पुलिस कार्रवाई से अपराध की घटनाओं में कमी आती है. इसे पुलिस व सरकार दोनों को समझना आवश्यक है. वरना, सांप गुजर जाने के बाद लकीर पीटी जाती रहेगी.

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