ऑटिज्म के शिकार बच्चे मनोविज्ञान से हो सकते परिपक्व

कानपुर, रिपोर्टर : ऑटिज्म एक न्यूरल डेवलपमेंट डिसआर्डर है। ऑटिज्म के शिकार बच्चों का व्यवहार सामान्य बच्चों की तुलना में अलग होता है। इसका दवा से इलाज संभव नहीं है। इस समस्या को मनोवैज्ञानिक तरीके से हल किया जा सकता है।

विश्व ऑटिज्म दिवस हर साल दो अप्रैल को मनाया जाता है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि कपूर ने बताया कि तीन वर्ष की आयु के बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण सामने आ जाते हैं। ऑटिज्म लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में पांच गुना होती है। आंकड़ों के मुताबिक डेढ़ सौ में एक बच्चे में ऑटिज्म के लक्षण पाए जाते हैं। वहीं मनोवैज्ञानिक तराना परवेज के मुताबिक ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को व्यवहारिक थेरेपी, सेंसरी स्टीमुलेशन, विशेष भाषा विकास और संज्ञानात्मक प्रशिक्षण देने से उनमें सुधार लाया जा सकता है। वहीं बाल मनो चिकित्सक डॉ. आलोक बाजपेई का कहना था कि शुरुआत में ही ऐसे बच्चों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कई बच्चों में ऑटिज्म होने के बावजूद सामान्य बुद्धि पाई जाती है।

लक्षण : बच्चा अपनी ही धुन में मस्त रहे, व्यवहार में अंतर, बातों को बार-बार दोहराना, सामने बैठे व्यक्ति से नजरें चुराना, बात करने पर मुंह घुमाकर बात करना, स्कूल में दोस्त नहीं बनाना, अकेले रहना।

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