वाराणसी : वर्तमान में नारी के अस्तित्व पर रोज ही कुठाराघात हो रहा है। यहां तक बच्चिया भी ऐसे हादसों की शिकार बन रही हैं। पिता भी बेटियों के अस्मत से खिलवाड़ करने लगे हैं। इन घटनाओं से चिंतित बीएचयू के समाजशास्त्री प्रशासनिक कमजोरी और पूंजीवाद का 'साम्राज्य' एवं मनोचिकित्सक विज्ञापन व इंटरनेट की दुनिया में बढ़ती कामुकता को प्रमुख कारण बता रहे हैं।
आदिम युग की आहट : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री प्रो. अरविंद कुमार जोशी के अनुसार सिर्फ जानवरों या आदि मानवों में रिश्तों की मर्यादा नहीं होती। इन दिनों की घटनाएं पशुवत संस्कृति को जन्म दे रही हैं। समाज का यह रूप प्रशासनिक कमजोरी का नतीजा है। बताया कि पूंजीवाद ने लाभ के लिए स्त्री चरित्र का बाजारीकरण कर दिया है। इन्हें रोकने के लिए कानूनी औपचारिकताओं को कम करते हुए सीधे कार्रवाई करनी होगी। यह सच है कि कानूनी पहलुओं में पीड़िता को ही सर्वाधिक दबाया जाता है। गांवों में पश्चिमीकरण की बयार चलने से प्रेम भावना समाप्त हो गई है। शरीर का उपभोग ही प्रधान हो गया है।
नारी उत्पाद नहीं : मनोचिकित्सक प्रो. एस. गुप्ता ने बताया कि उत्तर प्रदेश में हो रहे दुराचार की वारदातों का मुख्य कारण विज्ञापन की दुनिया है। विज्ञापन ने स्त्री को 'सेक्स ऑब्जेक्ट' बना दिया है। इसीलिए दाढ़ी बनाने के रेजर से लेकर बाइक तक के विज्ञापन में छोटे कपड़े पहने स्त्री होती है जबकि उत्पाद से लड़की का कोई संबंध नहीं रहता। उन्होंने कहा कि यह वारदातें स्त्रियों के लिए कपड़े कारण नहीं हैं। इसकी शिकार चार साल की बच्ची से लेकर 55 साल की महिला तक हो रही हैं।
चल रहा अभियान : सामाजिक संस्थान खुशहाली की ओर से बलात्कार की घटनाओं के विरोध में अभियान चलाया जा रहा है। इसे रोकने के लिए पोस्टरों में माडर्न नारी का चित्र बनाया गया है और उसे सम्मान देने की अपील की गई है।
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(Hindi news from Dainik Jagran, newsstate Desk)