बच्चों के लालन-पालन के साथ मनोविज्ञान समझने पर जोर

बच्चों के लालन-पालन के साथ मनोविज्ञान समझने पर जोर

रांची : बच्चों के लालन पालन के साथ उनके मनोविज्ञान को समझा जाए तो बच्चे को जीवन की सही दिशा दी जा सकती है। यह बातें प्रोफसर मीरा अग्रवाल, एचओडी मनोविज्ञान रांची विश्वविद्यालय ने कहीं। प्रोफेसर मीरा गुरुवार को एसडीसी सभागार में रेड्स (रैग्स पिकर्स डेवलमेंट स्कीम) के तत्वावधान में आयोजित स्लम के अभिभावकों की कार्यशाला में बोल रहीं थीं।

उन्होंने कहा कि बच्चों का पालन सख्ती से न करें, लेकिन उनकी निगरानी अवश्य करें। विशेषकर उनकी संगति और पैसों को लेकर उनकी रूचि पर ध्यान रखें। इस दिशा में धैर्य के साथ उनका मार्गदर्शन करें और उन्हें समझाएं।

कार्यशाला में व्यक्ति की पूरी जिंदगी और उसके मनोविज्ञान को विस्तार से समझाया गया। इसमें गर्भ से लेकर बच्चे के जन्म और विभिन्न उम्र के वर्गीकरण के साथ मनोविज्ञान की व्याख्या की गई। रेडस के निदेशक ब्रदर कुलदीप और फादर जेम्स डुंगडुंग ने बताया कि बच्चों को सही ट्रैक पर लाने के लिए अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं की जानकारी रखनी चाहिए।

इसके अंतर्गत 0-18 महीने, 18 महीने-3 साल अर्ली चाइल्डहुड, 3-5 साल प्री स्कूल, 6-11 साल स्कूल एज, 12-18 साल किशोरावस्था, 19- 40 साल यंग एडल्ट, 40-64 साल एडल्ट और 65 से उपर परिपक्व अवधि की जानकारी दी गई। इसमें कहा गया कि 18 महीने से तीन साल तक बच्चे विश्वास और विश्वासघात को समझने लगते हैं। अर्ली चाइल्डहुड में बच्चे में डर, लज्जा जैसी भावना आने लगती है। वहीं प्री स्कूल के दौरा बच्चे किसी चीज को खुद करना चाहते हैं। स्कूल एज में नयापन को अपनाते हैं, इस समय अभिभावक की ओर से बच्चों को सहयोग के साथ अच्छी और बुरी बातों को समझाने की जरूरत है।

कार्यक्रम में विपिन, नेहा कुजूर, आशा, अंजू, रूधिर लिंडा, तहसुम सहित चार सौ से अधिक अभिभावक शामिल हुए।

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(Hindi news from Dainik Jagran, newsstate Desk)

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