- स्वामी सुखबोधानंद
'हर कोई आपको बाहर की दुनिया में सफलता पाना सिखाएगा लेकिन असल बात है अपने मन को शांत कर लेना। वह तो आपको खुद ही करना होगा। मन को जीतने के लिए जरूरी है कि हम अपने मनोविज्ञान को बदल लें।'
एक बार फिलॉसॉफी के तीन प्रोफेसर ढलती शाम में रेलवे स्टेशन गए। उनमें से चौथे प्रोफेसर को पड़ोस राज्य में होने वाले एक महत्वपूर्ण व्याख्यान के लिए स्टेशन पर विदा करने आए थे। चूंकि गाड़ी छूटने में थोड़ी देर थी और सामान गाड़ी पर चढ़ाया जा रहा था तो चारों प्रोफेसर बातचीत में व्यस्त हो गए।
वे किसी विषय पर चर्चा करने लगे। वह चर्चा में इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें पता नहीं चला कि कब ट्रेन चालू हो गई और धीरे-धीरे आगे सरकने लगी। अभी तीनों प्रोफेसर चर्चा में व्यस्त ही थे कि उनकी नजर ट्रेन पर, ट्रेन छूट रही है। चारों प्रोफेसर उसे पकडने के लिए दौड़ पड़े। तीन प्रोफेसर तो ट्रेन में चढ़ गए लेकिन चौथा ट्रेन से बाहर ही रह गया।
वह अपनी आंखों के सामने ट्रेन को जाते हुए देख रहा था। तभी एक बुजुर्ग महिला आई और उसने कहा कि दुखी होने की जरुरत नहीं क्योंकि इसी स्टेशन से 5 मिनट बाद अगली ट्रेन भी जाती है और वह तुम्हें तुम्हारे तीनों दोस्तों से मिलवा देगी।
प्रोफेसर ने कहा कि मैं इसलिए दुखी नहीं हूं क्योंकि मेरी ट्रेन छूट गई बल्कि मैं तीन मित्रों के लिए दुखी हू जो ट्रेन में चढ़ गए हैं। महिला ने आश्चर्य से पूछा- इसमें दुखी होने की बात क्या है यह तो अच्छा है कि उनकी ट्रेन नहीं छूटी।
प्रोफेसर ने जवाब दिया- इसलिए क्योंकि वे तीनों मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आए थे। मित्रों ये तीनों प्रोफेसर चौथे प्रोफेसर को छोड़ने के लिए आए थे।
उन्होंने प्रभावकारी तरीके से सफलता प्राप्त की लेकिन उनकी सफलता असफलता में बदल गई। वे ट्रेन को पकडने के लिए क्यों दौड़े, क्योंकि वे यह भूल गए कि वे स्टेशन तक क्यों आए हैं। वे नहीं जान रहे। अनभिज्ञता के कारण ही उनकी सफलता असफलता में बदल गई। इसलिए अगर हमें मालूम नहीं है कि हम क्या कर रहे हैं तो हमारी सफलता कोई मायने रखती। अगर हमें जानकारी नहीं है तो
हमारा जीवन प्रसन्ना नहीं हो सकता। इसे यूं भी समझिए कि टेक्नोलॉजी बहुत बड़ी है लेकिन जीवन में शांति बहुत कम हो गई है। इसमें टेक्नोलॉजी का कोई दोष नहीं है लेकिन आपको पता होना चाहिए कि उसका उपयोग कैसे करें।
यह ज्ञान आ जाए तो आपके भीतर भी शांति रहेगी। आज सारा जोर इसी पर है कि आप बाहरी दुनिया में विजेता साबित हों और अपने मन को भी जीत लें। हर कोई आपको बाहर की दुनिया में सक्सेस पाना सिखाएगा लेकिन असल बात है अपने मन को शांत कर लेना। वह तो आपको खुद ही करना होगा।
मन को जीतने के लिए जरूरी है कि हम अपने मनोविज्ञान को बदल लें। हमारे मनोविज्ञान को बदलने की जरूरत है। समस्याएं कई हैं और उन्हें टाला नहीं जा सकता है लेकिन उन समस्याओं से मिलने वाली यातना को टाला जा सकता है। हर किसी को समस्याएं हैं। भगवद् गीता में कहा गया है- कष्ट तो आपको सहना ही है।
शिक्षक और गुरु यही करते हैं कि वे आपको बताते हैं कि समस्याओं को मुस्कुराते हुए किस तरह हल करना है। वे आपसे कहते हैं कि कोई बात नहीं हम हर समस्या को हल कर लेंगे। समस्याएं के प्रति मनोविज्ञान बदलने की जरूरत है।
एक उदाहरण से समझिए। एक बहुत रईस आदमी था। उसने 1 करोड़ खर्च करके एक स्टेडियम बनाया। फिर 20-30 लाख रु. खर्च करके दुनिया के श्रेष्ठ फुटबॉलर मेराडोना और अन्य सितारों को वहां खेलने के लिए बुलाया। वह रईस और उसका बेटा बैठकर मैच देख रहे थे।
मैच प्रारंभ हुआ और पूरे स्टेडियम में शोर था। रईस बहुत खुश था लेकिन उसके बेटे के चेहरे पर अच्छे भाव नहीं थे। रईस ने बेटे से पूछा कि तुम इतने निराश क्यों हो? बेटे ने कहा- आप बहुत कंजूस हैं डैडी।
रईस चौंक गया और बोला- मैंने इतना खर्च करके यह स्टेडियम बनाया, चुनिंदा खिलाड़ी बुलाए और तुम कहते हो कि मैं कंजूस हूं, कैसे? बेटे ने कहा कि आप ने इतने बड़ा स्टेडियम बनाया, इतने बड़े खिलाड़ी बुलाए लेकिन मैं देख रहा हूं कि 22 खिलाड़ी इतनी धूप में बस एक ही बॉल के पीछे भाग रहे हैं।
क्या आप उन्हें खेलने के कुछ ज्यादा बॉल नहीं दे सकते थे। तो, अगर आप चीजों को समझते नहीं हैं तो इसी तरह परेशान रहेंगे। अगर समझते हैं तो जिंदगी के मैच का आनंद उठाएंगे। फुटबॉल का मजा यही है कि खिलाड़ी धूप और गर्मी में एक गेंद के पीछे भागते हैं।
आप देखने का भाव बदल देते हैं तो चीजों का अर्थ बदल जाता है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण यही है कि आप समस्याओं को कैसे देखते हैं।
अगर आप उन्हें गलत अर्थ में समझ रहे हैं तो हमेशा निराश ही रहेंगे जबकि अगर आप उनका हल या उनका ठीक अर्थ जान गए हैं तो आपके लिए कुछ भी समस्या है ही नहीं। इसलिए समस्याएं रहेंगी लेकिन उन्हें जीतने और सुलझाने का नजरिया पैदा कीजिए।
(स्वामी जी के इंफोसिस में दिए व्याख्यान का संपादित अंश)
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Web Title:Find solutions to problems not panic
(Hindi news from Dainik Jagran, spiritualsant-saadhak Desk)