सबकी प्यारी बनें संतान
बच्चों के लिए पढ़ाई और दूसरी चीजें जितनी जरूरी होती हैं उतने ही जरूरी होते हैं संस्कार। इनके जरिए आपका लाडला लोगों के बीच सहज महसूस करता है। साथ ही वह बन जाता है सबका प्रिय। बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. अनुराधा भाटिया बता रही हैं कि कैसे सिखाएं बच्चों को तौर-तरीके।
गोल्डन रूल
अच्छे संस्कार बच्चों की जिंदगी में बहुत महत्व रखते हैं। बच्चों को किसी बात को सिखाने का सबसे बेहतर तरीका खुद भी उस पर अमल करें और उनके रोल मॉडल बनें, जैसे खाने के दौरान अपनी बारी आने का इंतजार। यदि बच्चा खुद के पास खाना जल्दी परोसने की जिद करे तो उसे प्यार से समझाएं कि बिना अपना नंबर आए खाने की खींचतान करना खराब आदत है। यदि कोई दूसरा ऐसा करेगा तो उन्हें भी यह बात पसंद नहीं आएगी। उन्हें तीन शब्द ''प्लीज, थैंक यू और सॉरी'' सिखाने की कोशिश करें। अभिभावक होने के नाते आपका यह दायित्व है कि बच्चों को यह सिखाएं कि जब वे कोई चीज जैसे कुकीज इत्यादि चाहते हों तो प्लीज कहकर मांगना चाहिए। जब आपको वह चीज मिल जाए तो मुस्कुराहट के साथ थैंक यू या धन्यवाद बोलना चाहिए। वहीं यदि धोखे से कुछ गिर जाए तो तुरंत ही सॉरी बोलें और इस बात का ख्याल रखें कि दोबारा ऐसा न हो।
उपरोक्त के अलावा कुछ और बातें भी हैं अहम् जैसे खाने की टेबल पर या गार्डन में आपका व्यवहार कैसा होना चाहिए? इसके साथ ही जब बाजार जाएं या पार्टी में जाना हो तो कैसा व्यवहार मान्य कहा जाएगा, इस संबंध में बच्चे के साथ मिलकर नियमों का चार्ट तैयार करें। एक बार जब यह नियम सूचीबद्ध हो जाएंगे तो बच्चों के लिए इन पर अमल करना अधिक आसान होगा।
बनाएं व्यवहार कुशल
आज के हिसाब से टेलीफोन एटीकेट्स बहुत जरूरी हैं, जैसे कि किस प्रकार किसी को धन्यवाद दें, कैसे किसी को होल्ड पर छोड़ें और सबसे जरूरी है बातचीत का तरीका। इन बातों को सिखाने के लिए आप उनके सामने स्वयं का उदाहरण पेश कर सकती हैं। इसके लिए बच्चों के सामने आपको खुद भी फोन पर ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए। यह भी गौर करें कि अगर कभी आपके पास किसी गलत नंबर की कॉल आती है तो क्या आप तेज आवाज में चिल्लाकर डांटने लगती हैं कि आपने गलत नंबर मिलाया है, क्या दिखाई नहीं देता? यदि आप स्वयं ऐसा करती हैं तो जरा सोचिए कि बच्चे से यह कैसे कह सकेंगी कि रांग नंबर की कॉल्स आने पर उसे विनम्रता से कहना चाहिए कि 'माफ कीजिए, मुझे लगता है कि आपने गलत नंबर मिला लिया है'।
अच्छे व्यवहार के इन नियमों को बच्चे कितनी जल्दी सीखते हैं, यह आपके सिखाने के तरीके के साथ ही उसके व्यक्तित्व और सीखने की क्षमता पर भी निर्भर करता है। साधारणत: शर्मीले स्वभाव के बच्चे घर आए मेहमानों का अभिवादन करने के लिए अपने आप आगे नहीं आते। ऐसे में इसके लिए उन्हें प्यार से समझाएं। यदि आप चिल्लाकर उन्हें सिखाएंगी तो परिस्थितियां और खराब हो जाएंगी। आपका सख्त रवैया बच्चों की सोच को नहीं बदल सकता है। बच्चों को प्यार से समझाने पर वह खुद ही दूसरों की भावनाओं को समझने लगेंगे और अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने को तैयार हो पाएंगे। कभी-कभी बच्चे हद से ज्यादा अपना आपा खो देते हैं और बहुत तेज बोलने लगते हैं। ऐसे में उन्हें उसी अंदाज में समझाएं जैसे वह समझ सकते हैं।
सच बोलना है जरूरी
उन्हें यह समझाना आपका फर्ज है कि ईमानदारी से सच बोलने में कोई बुराई नहीं है। इसके साथ ही उन्हें यह समझाना भी जरूरी है कि कई बार उनके द्वारा कहे गए शब्द काफी ठेस पहुंचाने वाले हो सकते हैं। दूसरों का दिल दुखाने वाली कोई बात कहने से उन्हें बचना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि आपका बच्चा किसी महिला की तरफ अंगुली उठाकर कहता है कि वह कितनी मोटी हैं तो उसे समझाएं कि ऐसा नहीं कहना चाहिए। उसे यह भी बताएं कि यदि वह अपने साथियों और उनके अभिभावकों से रूखा व्यवहार करेगा तो उन्हें बुरा लगेगा। हो सकता है कि वे आपके साथ दोबारा खेलना पसंद न करें।
बच्चों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वे अपने दोस्तों से विनम्रता से बात करें। उदाहरण के तौर उन्हें सिखाएं कि जब दोस्त या मेहमान घर आएं तो यह कहना चाहिए कि 'आपके आने का शुक्रिया'। इतना ही नहीं जब वे स्वयं किसी दोस्त के घर से लौट रहे हों तो उन्हें यह कहना नहीं भूलना चाहिए कि 'इतना अच्छा समय बिताने का मौका देने के लिए धन्यवाद।'
अपने बच्चों को बताएं कि बिना किसी को ठेस पहुंचाएं हमेशा सच बोलना चाहिए। यदि उन्हें कोई व्यंजन ऑफर किया जाए और वह पसंद न हो तो ऐसे में उसकी झूठी तारीफ करने के बजाय सिर्फ धन्यवाद कहते हुए विनम्रता से इंकार कर दें।
आखिरी बात बच्चों के बेहतर काम और अच्छे संस्कारों के लिए उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करती रहें और बताती रहें कि उनके सहज स्वभाव से उन्हें कितनी प्रशंसा मिलती है। उनके सामने खुद का उदाहरण पेश करें, क्योंकि बच्चे चलते तो अभिभावकों की राह पर ही हैं।
इला शर्मा
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