राकेश पठानिया, धर्मशाला
मन पर किसकी हुकूमत होती है? आदमी की? जी नहीं, मौसम की। दुनियाभर में हुए शोध उस चिकित्सकीय तथ्य को बदल रहे हैं जिनमें कहा जाता है कि मौसम का सेहत से कोई लेना-देना नहीं होता। अब मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि मौसम का मनुष्य ही नहीं, उनके मूड पर भी असर होता है। हिमाचल के संदर्भ में यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सर्दी में सूर्यदेव के दर्शन बहुत कम हुए हैं लिहाजा अवसाद और तनाव की बातें भी हुई हैं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. मेजर सुखजीत सिंह का कहना है कि खराब मौसम के कारण तनाव एवं अवसाद बढ़ते हैं और उनके पास सर्दियों में तनाव ग्रस्त लोगों के उपचार के लिए आने वालों का आंकड़ा अधिक रहता है। उनका कहना है कि कम रोशनी के कारण भी तनाव बढ़ता है। इसके लिए बादलों वाला मौसम ही नहीं बल्कि अगर घर में व्यापक रोशनी न हो तो भी तनाव में वृद्धि होती है। इसे सीजनल अफेक्टिव डिस ऑर्डर कहा जाता है। उन्होंने बताया कि इसका इलाज फोटोथैरेपी से किया जाता है। इसका साधारण अर्थ यह है कि अवसाद से बचने के लिए अधिक से अधिक रोशनी की व्यवस्था होनी चाहिए और अगर कहीं कमरों में अंधेरा हो तो उसे दूर करने के लिए रोशनी की व्यवस्था करना जरूरी है। वह मानते हैं कि इससे मानव की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
व्यक्ति किसी भी कार्यक्षेत्र का हो, वह सूर्य की मौजूदगी में जितना अधिक काम कर पाता है उतना वह आसमान पर छाए बादलों के दौरान नहीं कर पाता है। जनवरी से मार्च तक के शीतकाल के मौसम में छाए बादलों के कारण तो इसका प्रभाव अधिक होता है। चिड़चिड़ापन, काम करने में मन न लगना व किसी से बातचीत न करना भी इसके मुख्य लक्षण हैं।
नेचुरल न्यूज में प्रकाशित एम बेंजर का शोध भी इस तथ्य की पुष्टि करता है। इसके अनुसार हमारे शरीर को सूर्य से सबसे अधिक विटामिन डी मिलता है। विटामिन डी की कमी से मधुमेह, हृदय रोग, एलर्जी, कैंसर, अल्जाइमर व मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। शरीर तनाव महसूस करता है। यही कारण है कि सर्दियों में आत्महत्या व डिप्रेशन के मामले बढ़ जाते हैं। तापमान शरीर के एनर्जी लेबल को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है। जब शरीर गर्म होता है तो रक्त का प्रवाह सामान्य रहता है। ठंडे मौसम में यह प्रतिक्रिया विपरीत होती है, जिससे बीमारी का खतरा अधिक होता है। शरीर के प्रत्येक अंग को ऑक्सीजन की जरूरत होती है। रक्त प्रवाह के जरिये शरीर को यह प्राप्त होती है। सर्दी में गर्मी को बचाए रखने के प्रयास में शारीरिक कार्य धीमे हो जाते हैं। इससे शरीर में कंपन होने लगता है और सभी महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर सकते हैं।
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लेकिन इनका मत है अलग
आइजीएमसी शिमला के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कंदरोरिया का कहना है कि मौसम बदलना प्राकृतिक प्रक्रिया है व इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। उनका मानना है कि खराब मौसम में तनाव पैदा होना स्वभाविक नहीं है। केवल आधा प्रतिशत लोगों पर ही खराब मौसम का प्रभाव पड़ता है इसलिए मौसम के प्रभाव को तनाव से नहीं जोड़ा जा सकता। लेकिन हृदय रोगियों को शीतकालीन मौसम के दौरान ठंड से बचाव रखना चाहिए। उनका कहना है कि सर्दियों में अक्सर रक्त गाढ़ा हो जाता है जिससे हृदयाघात का खतरा बढ़ता है। इससे बचने के लिए लोगों को घर से बाहर निकलते समय ऊनी कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए और इन दिनों अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए।
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