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उदयपुर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के जी बालाकृष्णन ने वैश्वीकरण और विदेशी पूंजी निवेश के खतरों के प्रति आगाह करते हुए कहा कि यह मुद्दे व्यापक हितों में स्वीकार किए जा सकते है बशर्ते इनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन ना हो तथा आम आदमी का हित भी प्रभावित ना हो। बालाकृष्णन गुरुवार को यहां राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के तत्वावधान में मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के सहयोग से शुरु हुई दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे।
सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में आयोजित यह सेमीनार वैश्वीकरण, गरीबी ओर मानवाधिकार विषयक पर केन्द्रित है। बालाकृष्णन ने कहा कि एफडीआई हमारी अर्थव्यवस्था को कैसी मजबूती देगा यह अभी कहना मुश्किल है क्योंकि यह बाद के वर्षों में पता चलेगा। यह वैश्वीकरण का ही असर है जो हम महसूस कर रहे है। वैश्वीकरण के फायदे तो हम सब जानते है लेकिन इससे नुकसान भी कम नही है। उन्होंने कहा कि एमएनसी बडी बडी फेक्ट्रिया लगाती है ओर प्रदूषण फैलाती है साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती है। उन्होंने कहा कि इससे आदिवासियों के जनजीवन पर भी विपरीत असर पडता है साथ ही इससे उनकी सांस्कृतिक पहचान पर भी आंच आती है। बालाकृष्णन ने बोतलबन्द पानी बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे जिस तरह से हमारे पानी का दोहन करती है वह एक प्रकार की एक्वा रोबरी है। उन्होंने कहा कि हम ग्लोबलाइजेशन के खिलाफ नहीं है लेकिन इससे मानव के अधिकारों को नुकसान नहीं होना चाहिए। उन्हों बताया कि इस पर मानवाधिकर आयोग की ओर से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए एक कोड आफ कंडक्ट बनाया गया है तथा इन कम्पनियों पर नजर भी रखी जा रही है यदि इसका उल्लंघन होता पाया जाएगा तो आयोग कार्रवाई भी करेगा। राजस्थान व गुजरात में अवैध खनन से जुडे मसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस सम्बन्ध में आयोग को हाल ही में एक रिपोर्ट भी मिली है जिसमें बताया गया कि इस तरह के खनन से लोगों के श्वसन तन्त्र में समस्याएं आ रही है। इसके साथ ही उन्होंने फ्लुरोसिस के खतरों के प्रति भी आगाह किया। उन्होंने मिड डे मिल को बेहतरीन योजना बताते हुए कहा कि इससे स्कूलों में ड्राप आउट की समस्या कम हुई है तथा बच्चों की उपस्थ्िाति बढी है। उन्होंने कहा कि मोरक्को जैसे देश जहां भुखमरी है वहां लोगों को दो समय का खाना सरकार उपलब्ध करवा रही है।
ऐसे में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इस तरह के प्रकल्प चलाने चाहिए। वे अगर कमाते है तो जनता को कुछ सुविधा भी देना चाहिए। बालाकृष्णन ने कहा कि वैश्वीकरण से पडौसी मुल्कों में क्या बदलाव आ रहा है इस पर भी हमे नजर रखनी चाहिए। मुख्य वक्ता राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति न्यायमूर्ति एनएन माथुर ने कहा कि वैश्वीकरण के खतरे भी बडे है इससे निपटने के उपाय भी होने चाहिए। उन्होंने बेरोजगारी की समस्या को सबसे अहम बताया और कहा कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारे रोजगार मार देती है संगठित और असंगठित कामगारों के हाथ से काम छीन लेती है और इससे मरीबी बढती है। भूख को दूसरी बडी समस्या के तौर पर रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि लोग बंधुआ बनने, अपने बच्चो और अपने अंगों को बेचने को मजबूर होते है और यह बस केवल अपने पेट के लिए होता है। सरकार को इससे निपटने तथा इन समस्याओं से बचने के लिए ठोस कार्ययोजनाएं बनानी चाहिए जिससे वैश्वीकरण के खतरे कम किए जा सके और आम आदमी का जीवन स्तर उंचा उठाया जा सके। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो आई वी त्रिवेदी ने आयोजन को विश्वविद्यालय के लिए महत्वपूर्ण आयोजन बताया। इस अवसर पर मानवाधिकार आयोग के सहायक निदेशक डा सरोज शुक्ला तथा संयुक्त सचिव जेएस कोचर ने भी विचार व्यक्त किए। स्वागत प्रो संजय लोढा ने किया।
पहले दिन दो तकनीक सत्र हुए। पहले सत्र में डा सुभाष शर्मा- दिल्ली ने वैश्वीकरण, गरीबी और मानव अधिकार, प्रो माधव हाडा ने वैश्वीकरण के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संदर्भ, डा प्रतिभा- उदयपुर ने सांस्कृतिक अस्मिता वैश्वीकरण तथा सामाजिक सरोकार, देवेश श्रीवास्तव- दिल्ली ने सामाजिक न्याय, वैश्वीकरण तथा प्रशासन का उत्तरदायित्व विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के प्रो गिरीश्वर मिश्र ने की। दूसरे सत्र में तरुशिखा सुरजन- दिल्ली ने वैश्वीकरण, कामकाजी महिलाएं तथा मानव अधिकार, डा रामरति मलिक- रोहतक ने महिला सशक्तिकरण तथा मानव अधिकारों का अन्तर्सम्बन्ध, डा कुंजन आचार्य- उदयपुर ने मानव अधिकारों की रक्षा तथा टीआरपी बढाने की होड तथा डा अमित सिंह- जोधपुर ने वैश्वीकरण विकास एवं संचार क्रान्ति विषयों पर शोध पत्र पढे। सत्र की अध्यक्षता पटना के प्रो अरुण कमल ने की। शुक्रवार को दो तकनीकी सत्र होंगे।