बडे़ काम की है लेखन थेरैपी
व्यस्त जिंदगी में किसी अपने के कंधे से कम नहीं कागज का साथ.. सब तनाव हवा हो जाएंगे, जब डायरी पर चलेगा आपका हाथ
1. मनोविज्ञान के प्रणेता सिगमण्ड फ्रायड ने अपने रोगियों को अपने विचार और भावनाएं लिखने का हमेशा परामर्श दिया।
2. आधुनिक साइकोलॉजिस्ट भी अपने मरीजों को सर्वप्रथम सब कुछ कह देने या लिख देने को प्रेरित करते है। कारण, मानसिक पीड़ा को कम करने का एक कारगर उपाय यही है कि उसे कहकर या लिखकर बाहर कर दिया जाये।
3. इंगलिश पोएट शैली ने 'लेखन' के महत्व को कुछ इस प्रकार रेखांकित किया था- हमारे सबसे प्यारे गीत वही होते है, जो दु:ख के भावों से निकलते है। कवि के कहने का भावार्थ यही था कि जब हमारे जीवन की व्यक्तिगत संवेदनाएं कागज पर व्यक्त हो जाती है तो मन का बोझ उतर जाता है।
4. मशहूर रचनाकार जय शंकर प्रसाद ने यूं लिखा था-
जो धनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई।
दुर्दिन के आंसू बनकर वह आज बरसने आई॥
उनके कहने का भाव था कि जब आंसुओं की धार कागज कलम में उतर आती है तो मन हल्का हो जाता है।
5. महात्मा गांधी ने भी प्रतिदिन डायरी लिखने के महत्व पर बल दिया था।
6. अनेकानेक आध्यात्मिक गुरु अपने शिष्यों को कहते है कि अपने सुख-दु:ख लिखकर हमें प्रेषित कर दो। ताकि उनका मन शांत और द्वंद्वविहीन हो जाए।
7. 'लेखन-थेरैपी' की कारगरता को यह तथ्य भी पुष्ट करता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं कम उदास पाई जाती है। वह शायद इसलिए कि वे अपने विचारों को आपस में बातचीत के जरिये फ्रीली वेंट करती रहती है। यह कोई जरूरी नहीं है कि हमारे दु:ख-दर्द सुनने वाला कोई हमदर्द हमें मिल ही जाए। ऐसे में बचता है दूसरा विकल्प यानी 'लेखन'। इसमें न तो कोई सुनने वाला चाहिए, न कुछ खर्च होता है और न ही किसी साइड इफेक्ट का डर।
8. 'लेखन-थेरैपी' से लिखने वाला तो लाभान्वित होता ही है। इसके अतिरिक्त बहुत बार दु:ख-दर्द भरी दास्तान पढ़कर पढ़ने वालों का भी मन हल्का हो जाया करता है।
यू. सिंह संतोषी
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