सिग्मंड फ्रायड प्रख्यात मनोवैज्ञानिक थे। मानव मन की जटिल गुत्थियों को वे सहज ही सुलझा लेते थे। फ्रायड का विश्लेषण अत्यंत गहन था, इसलिए उनके निष्कर्ष भी बड़े सटीक होते थे। लोग उनकी प्रतिभा से चमत्कृत हो जाते थे। एक बार फ्रायड किसी छुट्टी वाले दिन अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर बगीचे में घूमने गए। चंूकि उन्हें अवकाश था, इसलिए पत्नी बहुत प्रसन्न थी। यूं तो फ्रायड के पास परिवार के लिए समय कम ही होता था। अत: दोनों पति-पत्नी बातों में इस कदर मशगूल हो गए कि बच्चे का ध्यान ही न रहा। कुछ देर बाद जब खयाल आया तो देखा कि बच्चा वहां नहीं था। फ्रायड की पत्नी घबरा गई, किंतु फ्रायड ऐसे शांत रहे मानो कुछ हुआ ही न हो। यह देखकर उनकी पत्नी को गुस्सा आया। वह आवेश में बोली, 'आप तो ऐसे शांत हैं, मानो कुछ घटा ही न हो। खोजिए न हमारे बच्चे को।' फ्रायड ने पत्नी को धैर्य बंधाते हुए कहा, 'तुम जरा भी मत घबराओ, बच्चा मिल जाएगा।' पत्नी ने खीझकर पूछा, 'क्या बिना खोजे ही मिल जाएगा?' फ्रायड ने उसी धैर्य के साथ 'हां' कहते हुए प्रश्न किया, 'क्या तुमने उसे कहीं जाने से मना किया था?' पत्नी ने कहा कि उसे फव्वारे के पास जाने से मना किया था। यह सुनते ही फ्रायड बोले, '95 फीसदी यही उम्मीद है कि वह फव्वारे के पास होगा।' और सच में बच्चा वहीं मिला। तब फ्रायड ने कहा, 'यह मनोविज्ञान का नियम है कि मना किए गए काम को इंसान अवश्य करता है क्योंकि उसकी जिज्ञासा उसे ऐसा करने के लिए उकसाती है।' निषेध की अस्वीकृति मानव मन की सहज वृत्ति है। इसलिए कई बार निषेध के आज्ञात्मक स्वर के स्थान पर मित्रवत होकर स्नेहपूर्वक निषेध की वजह समझाने पर निहित उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।