मूलत: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले आशीष शुक्ला मुंबई में पले बढ़े। फिल्म ‘प्राग’ बतौर फिल्म निर्देशक उनकी पहली फिल्म है। इस सायकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म ने कई फिल्म समारोहों में जबरदस्त डंका बजाया है। पिछले दस साल से इंडस्ट्री से जुड़े आशीष से उनकी फिल्म के बारे में बात की शांतिस्वरुप त्रिपाठी ने।
फिल्म ‘प्राग’ की योजना कैसे बनी?
फिल्म ‘देव डी’ के दौरान रोहित खेतान से परिचय हुआ था। मैं रोहित खेतान के साथ मिलकर एक क्राइम थ्रिलर फिल्म बनाने जा रहा था, जिसकी शूटिंग हम इलाहबाद में करने वाले थे। लेकिन अचानक रोहित खेतान चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग चले गए। प्राग एक हेरीटेज सिटी है। अपने आप में एक डार्क सिटी है। सभी को पता हैं कि चेक गणराज को 1986 में आजादी मिली। बहरहाल, प्राग में रोहित खेतान को कुछ अनुभव हुए और उन्होंने मुंबई लौटकर मुझसे कहा कि हम प्राग शहर को लेकर एक डार्क थ्रिलर फिल्म बना सकते हैं। अखिरकार अब फिल्म ‘प्राग’बनकर लोगों के सामने है।
पर ‘प्राग’की कहानी कैसे लिखी गयी?
हमारी इस फिल्म में प्राग शहर लोकेशन नहीं, बल्कि एक पात्र है। हमारी फिल्म के मुख्य पात्र चंदन और प्राग शहर में काफी समानताएं हैं। हमारी फिल्म की मुख्य सोच यह हैं कि एक आदमी शहर में रहता है, लेकिन एक शहर भी आदमी के अंदर रहता है। तो इंसान की ही तरह शहर का भी अतीत, वर्तमान और भविष्य होता है। इंसान भी अपने अतीत से कट नहीं पाता है। हम आज भी गोरे लोगों की तारीफ करते हैं। गोरे चार सौ साल तक हमारे यहां शासन करते रहें हैं, इस कारण हमें उनकी आदत-सी पड़ गयी है।
आपने फिल्म के मुख्य पात्र चंदन और प्राग शहर में समानता कैसे जोड़ी?
रोहित तो प्राग शहर में रहकर आए थे। वह कुछ जानते थे, पर जब कथा लिखने की बात आयी तो मैंने इंटरनेट पर प्राग शहर को लेकर बहुत रिसर्च किया। रिसर्च के दौरान मैंने पाया कि प्राग शहर सबसे ज्यादा सताया हुआ शहर है। उसी तरह हमारी फिल्म का मुख्य पात्र चंदन भी सताया हुआ है। रिसर्च में मैंने पाया कि प्राग हर साल नदी में डूब जाता था। इसलिए इस पूरे शहर को जमीनी सतह से एक किलोमीटर ऊपर बसाया गया है। यदि वास्तु शास्त्र की माने तो घर के नीचे खोखली जगह नुकसान दायक होती है। प्राग को सबसे ज्यादा युद्घ झेलने पड़े। हमारी फिल्म पूरी तरह से प्राग की जमीनी सच्चायी से भी जुड़ी हुई है।
फिल्म में चंदन का पात्र क्या है?
हमारी फिल्म तीन दोस्तों की कहानी है। यह तीन दोस्त हैं चंदन, गुलशन और अशर्फी। तीनों आर्किटेक्ट हैं। चंदन हमेशा असुरक्षा की भावना से घिरा रहता है। चंदन को प्यार व दोस्ती की तलाश है, पर उसका दिमाग साथ नहीं देता, जिस वजह से उसकी महत्वाकांक्षाएं मात खाती रहती हैं। उधर गुलशन जल्दी दोस्त बना लेता है। अशर्फी और गुलशन दोनों मिलकर चंदन को मैन्यूप्युलेट करते रहते हैं।
तो क्या यह एक डार्क फिल्म हैं?
जी नहीं! इसमें रोमांस भी हैं, गाने भी हैं, सायकोलॉजी भी है। इसमें वह सब कुछ हैं, जो लोगों को पसंद आएगा। दरअसल यह एक सायकोलॉजिकल फिल्म है। मुझे लगता है कि यह जॉनर सिस्टम खत्म होना चाहिए।अब क्रास जॉनर फिल्म बननी चाहिए।
फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी क्या हैं?
इसकी सबसे बड़ी यूएसपी यह है कि यह फिल्म बहुत ही यथार्थप्रद है। फिल्म में एक लड़का और लड़की के बीच रोमांस हैं। लड़का भारतीय है और लड़की चेक गणराज्य की हैं। लड़की हिंदी की बजाय चेक भाषा में ही बात करती है।
इस फिल्म को देखने के बाद लोगों से किस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही हैं?
दिल्ली में इस फिल्म को देखने के लिए चेक गणराज्य की अंबेसी के लोग आए थे। उन्होंने हमें बधाई दी कि हमने उनके देश के शहर को बहुत ही रोचक तरीके से फिल्म में पेश किया। एक औरत ने कहा कि इस फिल्म को देखने के बाद अब उसे कॉलेज में पढ़ने वाले अपने बेटे को सही तरीके से समझना आ गया।