जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : पुरुषों के मुकाबले स्त्रियां ज्यादा सात्विक होती हैं और अपने सत-तपोबल के आधार पर ही इन्होंने ब्रह्मा के लेख भी बदले हैं। ऐसे कई प्रमाण शास्त्रों में वर्णित हैं। आशक्ति से सासारिक पदार्थो से मोह होता है जबकि आत्मज्ञानियों पर इनका कोई प्रभाव नहीं होता है। गृहस्थ से ही तीन अन्य आश्रमों ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और सन्यास का पालन हो सकता है। गृहस्थी को गृह वेदी माना गया है।
उपरोक्त बातें श्रीरामानिवासाचार्य महाराज ने जुगसलाई स्थित श्री राजस्थान मंदिर परिसर में चल रही 14 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को विदुर मैत्रेय संवाद, कपिस देवभूति, सती चरित्र प्रसंग पर प्रवचन करते हुए कही। उन्होंने कहा कि त्रेता युग तक अश्वमेध यज्ञ हुए, द्वापर युग में राजस्वी यज्ञ हुए क्योंकि उस काल के आने तक संतों की शक्तिया क्षीण होने लगीं थीं और आज तो केवल यज्ञ मात्र ही हो रहे हैं। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप शुक्रवार को तीनों प्रकार के प्राणायाम पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आसन को जीतना ही योगासन है। आयुर्वेदिक पद्धति का हवाला देते हुए लम्बी आयु के टिप्स भी दिए।
कथा आयोजनों पर व्यंग्य करते हुए महाराज ने कहा कि आजकल कथावाचक पैकेज में आ रहे हैं। कथा में जीवन दर्शन के तत्वों की प्राप्ति की बजाय आयोजन के नाम पर प्रदर्शन होने लगा है। आजकल कथा के माध्यम से कथावाचक भजन, गीत और नृत्य का माहौल बना रहे हैं। कथा अब ज्ञान का नहीं मनोविज्ञान का विषय बन गई है।
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ये थे यजमान
दैनिक पूजा बतौर यजमान रामेश्वर लाल शर्मा ने अपने परिजनों के साथ की। समस्त वैदिक अनुष्ठान आचार्य विजेंद्र ने करवाया।
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