इंसान पढ़ने की कला है ‘मनोविज्ञान’


जबलपुर। जिंदगी की भागदौड़ में रिश्तों का ताना-बाना टूट रहा है। समाज बिखर रहा है। धन और भौतिकतावादी चाहत घरों में पीयूष, रितु जैसे किरदार तैयार कर रही है, जो अपनों पर ही घात लगा रहे हैं। लोगों के पास अपनों के लिए ही वक्त नहीं है। पूरा जीवन मोबाइल, वाट्सएप पर सीमित होकर रह गया है। ऐसे में तन्हा हो रही जिंदगी को नए सिरे से समझने की कोशिश में लोगों को मनोविज्ञान की जरूरत पड़ रही है।

घर, परिवार, कार्यालय से लेकर अपने आस-पास से जुड़े माहौल में बने रहने वाले लोगों को समझना अनिवार्य सा होता जा रहा है। यह चाहत लोगों को मनोविज्ञान पढ़ने की ओर आकर्षित कर रही है। 'मनोविज्ञान' एक ऐसा विषय है जो इंसान पढ़ने की कला सिखाता है। इंसानों को पढ़ने की यह कला इन दिनों बड़ी ही उपयोगी और जरूरी बनी हुई है। टीचर, डॉक्टर, पुलिस सभी इसे अपने-अपने क्षेत्र में उपयोग कर रहे हैं। यह आधुनिक व भौतिक होती सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है कि प्रोफेशन के साथ ही घर-परिवार के अंदर भी रिश्तों को समझने और उनके साथ सामंजस्य बैठाने तक के लिए मनोविज्ञान जरूरी बन चुका है।

बेहतर कॅरियर के स्कोप

मनोविज्ञान पढ़ने के लिए शहर में तीन ही संस्थान हैं जहां मनोविज्ञान पढ़ने के इच्छुक अपनी पढ़ाई कर सकते हैं। शासकीय महाकोशल कॉलेज, शासकीय शिक्षण मनोविज्ञान एवं संदर्शन महाविद्यालय व शासकीय मानकुंवर बाई महिला महाविद्यालय। इन तीनों ही स्थानों पर स्टूडेंट्स की संख्या पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। खासकर पीजी डिप्लोमा क्लिीनिकल और गाइडेंस व काउंसलिंग के लिए स्टूडेंट्स में खास रुझान है। इसके साथ ही स्टूडेंट्स यह समझ चुके हैं कि तेजी से बढ़ती प्रतियोगिता के कारण उपज रहे तनाव ने इस विषय में बेहतर कॅरियर के स्कोप बना दिए हैं।

क्यों पड़ रही है जरूरत

शासकीय मनोविज्ञान शिक्षण एवं संदर्शन महाविद्यालय में प्रोफेसर रजनीश जैन ने बताया कि लोग जिंदगी को जितना कठिन बनाते जाएंगे। उतना ही अकेलापन, तनाव, डिप्रेशन बढ़ेगा। लोगों की महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं। जब ये पूरी नहीं हो पाती तो डिप्रेशन आता है। इन सभी बातों के कारण मनोविज्ञान की जरूरत पड़ती है। मनोविज्ञान शरीर की नहीं मन और दिमाग की परेशानियों को हल करता है। अगर इन परेशानियों का हल हो जाता है तो शरीर की आधी बीमारियां और परेशानियां अपने आप ही हल हो जाती हैं। महाकोशल कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ. शोभना खरे ने भी मनोविज्ञान की बढ़ती जरूरत का कारण समाज में होते नैतिकता के पतन को बताया।

दवा नहीं, परामर्श ही काफी

मनोविज्ञान पढ़ रहीं शबीना बानो का कहना है कि अक्सर लोग मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक को लेकर भ्रमित होते हैं। जबकि दोनों में काफी अंतर है। मनोचिकित्सक के पास जाने की जरूरत तब पड़ती है जब किसी तरह के परामर्श की गुंजाईश नहीं रहती। सिर्फ दवा की जरूरत होती है। जबकि मनोवैज्ञानिक सिर्फ परामर्श और बात करके समस्याओं को हल करते हैं। परामर्शदाता बिना शारीरिक कष्ट वाले रोगों का निराकरण करता है। कहा जा सकता है व्यक्ति के सोचने के तरीके, विचारों में सामंजस्य लाने का काम परामर्शदाता का होता है।

टीचर्स के लिए जरूरी

स्टूडेंट कंगना चावला ने बताया कि वे टीचर हैं और उन्हें लगता है कि टीचिंग के लिए मनोविज्ञान बहुत जरूरी है। बीएड में एक विषय के रूप में मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है। यहां बच्चों के मनोभावों को समझकर उन्हें उनके अनुसार शिक्षा और समझाइस देने की जरूरत पड़ती है। तब मनोविज्ञान बहुत काम आता है।

लड़कियों की संख्या ज्यादा

मनोविज्ञान पढ़ने वालों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या ज्यादा है। मनोविज्ञान पढ़ने वाली लड़कियां इसे जरूरी भी मानती हैं। इसका कारण बताते हुए अर्चना देशपांडे ने कहा कि लड़कियों के जीवन में बचपन से ही कई उतार-चढ़ाव आते हैं। ऐसे में जीवन को व्यवस्थित बनाए रखने में मनोविज्ञान काम आ सकता है। विशेष बात यह है कि आजकल लड़कियां खुद इस जरूरत को समझ रही हैं। सरिता ठाकुर ने बताया कि वो एक गृहिणी हैं। उन्हें लगता है कि लड़कियों की शादी के बाद जीवन में काफी बदलाव आते हैं। नए रिश्ते जुड़ते हैं। उन रिश्तों में सामंजस्य लाने के लिए मनोविज्ञान की समझ जरूरी है।

स्कूली पाठ्यक्रम में हो शामिल

मनोविज्ञान की स्टूडेंट आकृति श्रीवास्तव ने बताया कि यह सभी को समझने की आवश्यकता है कि उनके आस-पास किस तरह के लोग हैं। उनका व्यवहार कैसा है। कहीं न कहीं लड़कियों को इस बात की जरूरत अधिक होती है। अगर स्कूल स्तर से ही मनोविज्ञान पढ़ाया जाए तो लड़कियां काफी हद तक अपने जीवन में होने वाले भटकाव से बच सकती हैं। उनके साथ कौन कैसा व्यवहार कर रहा है इस बात को समझ सकती हैं। और खुद को सुरक्षित कर सकती हैं।

अपराधियों को समझने की समझ

कई बार ऐसा होता है कि घरों में ही अपराधी या कुंठित मानसिकता के लोग रहते हैं जिन्हें समय पर पहचाना नहीं जाता और कभी न कभी वे किसी गंभीर अपराध को अंजाम दे ही देते हैं। अभी-अभी हुए दो केस इस बात का उदाहरण है। पहला- ज्योति मर्डर केस में अपराधी बना ज्योति का पति पियूष । दूसरा- आरोही हत्याकांड में अपराधी बनी आरोही की मां रितु। यदि इनके दिन पर दिन बदलते व्यवहार, जरूरत से ज्यादा अकेले रहने या चुप रहने या फिर अन्य कुछ असामान्य गतिविधियों पर परिवार का कोई व्यक्ति शुरू से ध्यान देता तो शायद इन्हें अपराधी बनने से रोका जा सकता था।

जीवन में आ रहे तनाव के कारण

- जीवन की उलझनों का बढ़ना

- डिप्रेशन, अकेलापन

- रिश्तों में बढ़ती दूरियां

- भौतिकवाद और आधुनिकता की दौड़

- एकल परिवारों का बढ़ना

- पति-पत्नी दोनों का जॉब करना

- संवादहीनता का बढ़ना

- अपेक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं का बढ़ना

यहां है ज्यादा स्कोप

- शिक्षण संस्थाओं में

- अस्पतालों में

- एसएसबी में

- डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेनशन में

- व्यक्तिगत परामर्श

- पुलिस परिवार परामर्श केंद्र में

- पुलिस विभाग में

वर्जन

काउंसलर बनने की चाह

अच्छी काउंसलर बनना चाहती हूं। आज हर कोई किसी न किसी परेशानी में उलझा हुआ है। थोड़ी समझाइस भी उनका जीवन सुधार सकती है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक बनकर अपने पेशे को संभालने के साथ ही लोगों की मदद भी की जा सकती है।

- रनदीप कौर माखीजा

मनोविज्ञान से सुलझती गुत्थियां

मुझे आर्मी में जाना है इसलिए मैं मनोविज्ञान पढ़ रहा हूं। मैं मानता हूं कि सेना में मनोविज्ञान की जरूरत सबसे ज्यादा है। कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं जो सिर्फ मनोविज्ञान की सहायता से ही सुलझाई जा सकती हैं।

मधुसूदन पटेल

लोगों को समझना आसान

आज हर क्षेत्र में मनोविज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे अपने आसपास सहित कार्यक्षेत्र में लोगों को समझना आसान हो जाएगा। मैं आर्मी ज्याइन करना चाहता हूं। यहां यह शिक्षा बहुत काम आ सकती है।

विकास कुमार गुप्ता

एक तरह की सेवा

मनोवैज्ञानिक बनना एक तरह की सेवा है। सिर्फ बात करके किसी भटके हुए को रास्ता दिखाया जा सकता है तो इससे बेहतर और क्या होगा। मैंने ग्रेजुएशन भी मनोविज्ञान में किया है। पीजी कर रही हूं और आगे पीएचडी करना चाहती हूं।

- वर्षा कुमारी

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