जेएनएन, नालंदा : नव नालंदा महाविहार नालंदा मं चल रहे नौवें नालंदा डायलॉग के तीसरे दिन गुरुवार को बौद्ध दर्शन और चिकित्सा मनोविज्ञान की विविध अवधारणाओं पर चर्चा की गई।
परिचर्चा में भाग लेते हुए नव नालंदा महाविहार के पाली संकाय के प्रो. का. राणा पुरुषोत्तम कुमार सिंह ने कहा कि भगवान बुद्ध को भेषज गुरु कहा गया है। आज का आधुनिक मनोविज्ञान इस बात को स्वीकार कर रहा है कि बौद्ध दर्शन में जो भी तत्व हैं वे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के करीब है। बौद्ध ज्ञान व बौद्ध मनोविज्ञान को आज से परिप्रेक्ष्य में कैसे प्रभावशाली बनाया जा सकता है, इस पर विशेष शोध की आवश्यकता है। उन्होंने बौद्ध मनोविज्ञान दर्शन के अनुसार व्यक्तित्व, चित्त, अनैतिक कार्य करते वक्त किसी व्यक्ति के अंदर कौन-कौन से मनोवैज्ञानिक अवयव उपस्थित रहते हैं, सकारात्मक व्यक्तित्व कैसे बन सके इसपर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि चित्त को समझने के लिए भगवान बुद्ध ने बहुत ही गंभीर उपदेश दिये हैं।
महाविहार के प्रो.ललन कुमार झा ने 'बौद्ध साहित्य में चैतन्य' विषय पर बोलते हुए कहा कि चित्त, मन और विज्ञान समानार्थक है। बौद्ध साहित्य में, विशेषकर पाली साहित्य में चित्त के विभाजन का विषद् वर्णन किया गया है। पाली साहित्य में चैतन्य का यह आधार है कि सतत् जागरूक रहकर विश्व के तीन लक्षण को समझना चाहिए। ये लक्षण है अनित्य, अनात्य और दु:ख। इस संसार की हर वस्तु अनित्य है जो अनित्य है वह अनात्य अर्थात बिना आत्मा का है। जिसमें आत्मा नहीं जब वह नहीं रहेगा ता उसके प्रति लगाव के कारण हमें दुख होगा। उन्होंने विभिन्न ग्रंथों का उदाहरण देते हुए कहा कि बुद्ध तथा उनके शिष्य सदैव प्रसन्न रहते थे। अर्थात वे सतत जागरूक रहते थे। बुद्ध ने अतीत व भविष्य के बारे में सोचने से रोका है। हमें केवल वर्तमान में जीना चाहिए।
जेएनयू दिल्ली के प्रो. उत्तम कुमार ने कैंसर पर किये गये शोध पर चर्चा की। बंगलोर रिसर्च इंस्टीच्यूट के डा. आर श्री कांत, अरि डा. ज्योति काकुमन्न ने मिरो साइंस और बुद्धिज्म पर विस्तार से चर्चा की।
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